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Indian Comics Piracy : Right or Wrong?

Indian Comics Piracy

Indian Comics Piracy कामिक्स के क्षेत्र में करीब डेढ़ दशक से पुरानी है, जिसकी जड़ें खोंजी जाए तो वो किन्ही रूपों में किराये (Rent) पर Comics पढने या बारम्बार क्रय-विक्रय से मिलती जुलती है. किसी भी मुआमले में जहां वस्तु के खुदरे मूल्य से अधिक कमाई हो वह ‘अवैध’ कहा जाता है क्यूंकि उत्पादक को उससे कोई प्रत्यक्ष मुद्रा लाभ नहीं होता. पर 90 दशक के बाद Comics के सबसे बुरे दौर में इन्टरनेट का आगमन और कामिक्स स्कैन का आदान –प्रदान एक अलग ही पहलू सामने रखता है. यह एक (Phenomenon) अद्भुत घटना कहा जा सकता है जिसे की वर्तमान का कोई भी (Anachronism) कालदोष आक्षेप ‘अवैध’ नहीं कर सकता.

ये Indian Comics Fans ही थे जिनके जोश और जूनून ने लुप्तप्राय हो रहे, बंद हो गए प्रकाशनों या विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रो में अनुपलब्ध कामिक्सों को स्कैन करके विभिन्न डिजिटल फॉर्मेट में शेयर करके Indian Comics Piracy शुरू की. यह गतिविधि किसी भी प्रकार के मुद्रा-लाभ की भावना से ग्रसित नहीं थीं. अक्सर इन Scan Comics पर इनके विभिन्न व्यक्तिगत, blogs, orkut और फोरम ग्रुप्स की मुहर लगाईं जाती थी व इनके अन्दर fans द्वारा बनाए बैनर्स, चित्र व लेख आदि शामिल होते थे जिनका अपना सांस्कृतिक महत्व है, साथ ही ये (Markers) चिन्ह थे उनके इस प्रकार की गतिविधियों से जुडी भावना के जिसे piracy कहना उन fans को अपमानित करने से कम कुछ न होगा. क्यूंकि यह fans ही थे जिन्होंने मुफ्त में बिना किसी मौद्रिक लाभ के विभिन्न प्रकाशनों के Digital Comics को पूरे विश्व के लिए (Accessible) सुलभ किया है.

पर वर्तमान में सन 2017 में Indian Comics Piracy का रूप एकदम बदल चुका है और वह अपने ‘शब्दार्थ’ को ग्रहण कर चुकी है. बहुतेरे उन्ही पुराने Scan Comics को अब मुद्रा-अर्जन के लिए शेयर और उपलब्ध कराया जा रहा है न सिर्फ डिजिटल ऑनलाइन फॉर्मेट में बल्कि डीवीडी और प्रिंट करवाकर भी उसे बेचा जा रहा है. Mediafire और olx जैसे चैनल्स ने Indian Comics Piracy को बहुत ज्यादा वृहद् तौर पर बढाया है. URL short करने वाली websites जो की विज्ञापन या फिर hits के पैमाने से मुद्रा कमाने का विकल्प देती है इसे “मौद्रिकृत” कर दिया है.

तो , दो बिलकुल भिन्न दुनिया के Comics Fans आज के दौर में नजर आते है एक जिनका जूनून कामिक्स को बचा गया और दूसरा जिनका मुद्रा लोभ उन्हें खुदरे मूल्य या सीधा उपलब्ध प्रकाशन से कामिक्स खरीदने से रोकता है. साथ ही एक डिजिटल पाइरेट्स का एक ऐसा वर्ग सक्रिय है जो सम्भवत Comics की संस्कृति से बिलकुल जुड़ा न हो परन्तु Indian Comics Piracy के द्वारा मुद्रा-अर्जन के लिए वे इस दलदल में नाक तक डूबे हुए हैं और उन्हें Indian Comics Industry को होने वाली क्षति से कोई फर्क नहीं पड़ता.

Piracy यकीनन अवैध है परन्तु ‘शब्दश:’ इसे हर मामले में आरोपित करके परिभाषित करना मूर्खता होगी खासकर 90 के दशक के बाद के प्रथम पीढ़ी के उन Indian Comics Fans के मामले में जिन्होंने डिजिटल ‘शेयर’ कल्चर को अपनाकर Indian Comics को सहेज कर रखा.