मैं शुरू से ही हिंदी लेखकों का प्रशंसक रहा हूं इसलिए आज भी हिंदी की अच्छी और श्रेष्ठ पुस्तक प्राप्त होने पर अपने आप को अध्ययन करने से वंचित नहीं रखता। कुछ दिनों पूर्व एक मित्र द्वारा प्रखर श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित Hey Ram Book विषय पर चर्चा हुई मित्र द्वारा काफी अच्छे से इसकी व्याख्या की गई तो मेरे मन में भी इस पुस्तक के विषय में उत्कंठा जागृत हुई और इस पुस्तक का आर्डर तुरंत दिया जो आज मेरे को प्राप्त हो गई है।
किसी भी विषय पर अपनी राय देने से पहले उस विषय की गहराई का अंदाजा लगा लेना ही श्रेयकर होता है। चूंकि अर्ध कचरा ज्ञान हमेशा घातक होता है, और वह हमेशा एक तरफा बात करता है (जैसा कि अक्सर हम भी करते हैं) , इस कारण समाज वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ रहता है , अतः टीका टिप्पणी करने से पूर्व उस विषय पर अध्ययन करने की आवश्यकता अवश्यंभावी है।
निश्चित तौर पर स्कूली दिनों में हमने भी मुगलों की प्रशंसा और गांधी के खड़क बिना ढाल का गुणगान खूब पढ़ा और गाया। परंतु वास्तविक स्थिति को हमेशा बाल मन से छुपा कर रखा और यह ठीक भी है क्योंकि बालमन ऐसे ही राजनीतिक दांवपेच समझने में पारंगत नहीं होता परंतु ऐसी शिक्षा देकर देश के भविष्य को अंधकार में रखना भी कहां तक औचित्य पूर्ण हैं।
इसीलिए एक आयु के बाद ऐसी पुस्तकों का बच्चों का अध्ययन करना बेहद आवश्यक है ताकि वह इस बात का अंदाजा लगा सके कि देश की आजादी में किन नायकों ने अपना सब कुछ खोकर देश की अखंडता बनाए रखने का महत्वपूर्ण प्रयास किया और किन लोगों द्वारा उनके प्रयासों को कुचल दिया गया। और बाद में वही मिथ्या अहिंसा के पुजारी देश के महानायक माने गए और जिन्होंने विरोध के लिए ऐसा रास्ता चुना जिस कारण उनके माथे पर कलंक लग गया और वह देश की पहले आतंकवादी कहलाए।
अब यह Hey Ram Book मेरे हाथ में आ गई है सिर्फ ऊपरी तौर पर निगाह डाली है। कल से इस पुस्तक का गहनता से अध्ययन करने के बाद इस पुस्तक पर अपना रिव्यू अवश्य दूंगा। तभी सही गलत का अंदाजा लग सकेगा।
वैसे मेरे इतना लिख देने पर मेरे मित्र गण समझ गए होंगे कि मैं भी हमेशा एक तरफा समर्थक रहा हूं निश्चित तौर पर नाथूराम मेरे नायक रहे हैं परंतु गांधी के वर्चस्व को तोड़ पाना बहुत मुश्किल है। और इसे स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं। और यह मेरी निजी राय है, इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए