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Crystal Lodge : Bungling Advocate Mukesh Mathur

Crystal Lodge

नौकरी के सिलसिले में हाल ही मे मेरा तबादला Netherlands हुआ.वैसे तो यह देश है बहुत ही सुन्दर, पर यहाँ पर एक मुख्य अड़चन भाषा की है. अमूमन यहाँ हर कोई अंग्रेजी में बात कर ही लेता है, पर, यहाँ के स्थानीय लोगो का accent या अंग्रेजी बोलने की शैली थोड़ी से अलग है, जिससे बात करने में थोड़ी कठिनाई होती है. काफी दिनों से हिंदी में कुछ पढ़ा नहीं था तो अमेज़न से Surendra Mohan Pathak जी की Crystal Lodge का Kindle Edition खरीद कर पढ़ा.

Netherlands यहाँ की मूल भाषा dutch है. जहा देखो वहा ही dutch को प्राधान्य है. विज्ञापनों से ले कर अखबार तक, सब कुछ dutch ही dutch, और इन लोगो को अपनी भाषा पर उतना गर्व भी है. इसीलिए, अब बस गनीमत ही है कि यहाँ अंग्रेजी क़िताबे केवल public लाइब्रेरी में ही उपलब्ध है. हिन्दी क़िताबो का ख्याल तो छोड़ देना ही बेहतर है.

धन्य हो Amazon Kindle का जिसने ये Netherlands में भी मुमकिन कर दिखाया. अब थोडा सा off-topic जाता हूँ,इसी वायदे के साथ की on-topic भी आऊँगा.

बचपन से ही, साइंस फिक्शन, मर्डर मिस्ट्री टाइप की किताबो का मुझे शौक रहा है और ये हमेशा से मेरा पसंदीदा टाइमपास भी रहा  है. Sherlock Homes की क़िताबे पढ़ कर मै भी अपने आप को क्राइम सीन पर imagine  कर लेता था. जब कहानी के अंत में Sherlock Homes गुत्थी सुलझा देता था, तब मै भी ख़ुशी से फूला न समाता था. पर एक बात ज़रूर खलती थी की vernacular में ऐसे विकल्प बहुत ही कम या नहीं के बराबर ही थे, इस के बावजूद के हमारे देश में साहित्य-उपन्यास का इतिहास बहुत ही समृद्ध रहा है.अक्सर रेलवे स्टेशन पर हिन्दी में लिखी गयी इस genre की क़िताबे दिखाई तो देती थी, पर ये क़िताबे शर्लाक के मुक़ाबले में फीकी ही थी.

अब फ़िर मुद्दे पर आते हैं, वजह चाहे व्यवसायिक हो या न हो, Amazon और Harper Collins ने  इस सिलसिले  में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. सबसे पहले Harper Collins की बात करते हैं. Harper Collins एक बहोत ही नामचीन Publishing House है, जो की मुख्यता अंग्रेजी क़िताबे  छापता है. Amazon के बारे में आप भली भांति जानते हैं.

हिन्दी उपन्यास जगत में क्राइम नावेल के बादशाह समझे जाने वाले सुप्रसिद्ध लेखक Surendra Mohan Pathak का नाम आपने सुना ही होगा. इन्होंने अपने करियर में 300 से ज़्यादा क़िताबे लिखी है और इनके सबसे प्रसिद्ध किरदार विमल, रिपोर्टर सुनील, डिटेक्टिव सुधीर और Advocate मुकेश माथुर हैं. हाल ही में Harper Collins से एक पार्टनरशिप के तहत Surendra Mohan Pathak की कुछ क़िताबे “Repackaged” अवतार में क्रॉस-वर्ड्स बुक स्टोर में नज़र आई. ये क़िताबे मुख्यता विमल सीरीज की है. (जौहर ज्वाला, दमन चक्र, हज़ार हाथ इत्यादी).  वैसे ये बात बहुत ही अच्छी है कि अब ये सब क़िताबे पढने के लिए उपलब्ध है, पर गौर फरमाने वाली ये बात भी है कि ये सारी क़िताबे एक अरसे से मुद्रण के बाहर थी- जो कि अब Harper Collins की वजह ही से वापसी कर पायी है. जब पहली बार इन किताबो को देखा तो मन में विचार आया कि यार, क्या तो tacky और corny शीर्षक है. दूसरी बार देखा तो सोचा छोड़ यार, एक किताब पढ़ के देख ही लूं.

सिलसिला ऐसे ही जारी रहा और एक-एक करके मैंने सारी क़िताबे पढ़ ली. दिल न माना. Amazon वेबसाइट पर चेक करने के बाद पता चला की उनकी केवल 5 क़िताबे ही उपलब्ध थी. (ये बात गए साल की है, अब काफी क़िताबे उपलब्ध हैं) इसी दौरान मेरे प्रोफेशनल करियर में भी काफी मोड़ आये और वाचन की तरफ मेरा ध्यान सिमित हो गया.

Advocate मुकेश माथुर श्रुंखला में Crystal Lodge नामक किताब इन दिनों मैंने पढ़ी. किताब का मुख्य किरदार मुकेश माथुर बतौर ‘Bungling Advocate’ जाना जाता हैं. जो काम हाथ में लेता है, उसमे दुर्भाग्यवश कुछ न कुछ किरकिरी करवा ही लेता है. Crystal Lodge किताब इस किरदार के लिए “coming of age” मानी जा सकती है.  किताब में मुकेश अपने ही गुरु सीनियर Advocate नकुल बिहारी आनंद को खुल्ला चैलेंज देता हैं और जीत भी जाता हैं. अपने मुवक्किल कमलेश दीक्षित को बचाने के लिए मुकेश आनंद न तो सिर्फ पूरा प्रयत्न करता है, बल्कि अपना करियर भी दांव पर लगा देता है. किसी चट्टान के भाँती खड़े हो कर नकुल बिहारी आनंद प्रॉसिक्यूशन की तरफ से केस लड़ते है, फिर भी मुकेश माथुर अपनी मेहनत और सूझ-बूझ का इस्तेमाल करता है. मुकेश आनंद की भरसक कोशीश और चुनौतियों का सामना ही किताब का मुख्य आधार है.

Crystal Lodge किताब एक बहोत ही racy अन्दाज में लिखी गयी है. किताब का स्ट्रोंग पॉइंट है, कोर्ट-रूम सीन्स. Surendra Mohan Pathak जी ने भरपूर रिसर्च किया हुआ मालूम होता है. कई जगहों पर आर्गुमेंट्स बहोत लम्बी और पेचीदा है, लेकिन ये कहानी के आड़े नहीं आती बल्कि कहानी को आगे ही ले जाती है. Crystal Lodge की कहानी के अंत में ट्विस्ट है, जो थोडा बेमानी  लगता है पर मुझे विश्वास हैं कि Surendra Mohan Pathak जी ने काफी सोच विचार करने के बाद ही ये ट्विस्ट डाला होगा.

Surendra Mohan Pathak जी के किताबो की सबसे रोचक बात तो ये होती है की शुरुवात में, प्रस्तावना के रूप में उनके समाज पर चतुर कटाक्ष, जिनमे व्यंग्य का भी भरपूर dose होता है. Crystal Lodge के शुरवात में भी पाठक साहब काफी मसलो पर रौशनी डालने की कोशिश करते हैं. किताब को आप आसानी से John Grisham के नॉवेल्स के साथ compare कर सकते हैं. मेरा तो ख्याल ये है, की Crystal Lodge उनसे बेहतर ही है.

 

वर्नाकुलर को बढ़ावा देने का ये Harper Collins और Amazon का प्रयास वाकई में काबिले तारीफ़ है और मेरी ये तीव्र इच्छा है कि देश की तमाम भाषाओ को भी दोनों इसी तरह से बढ़ावा देते रहे.

ऐसे हालात में ये हमारा भी दाइत्व बनता है की सिर्फ इंग्लिश- इंग्लिश ही न भजते रहे. मै मानता हूँ की इंग्लिश बोलना आज वक़्त की ज़रुरत है, परन्तु हमारे देश की भाषाए हमारी संसकृति का अविभाज्य अंग है और हमे ही इन्हें आगे भी ले जाना है. मुझे इस बात का खेद है की हम सिर्फ उपरी सजावट वाले, जादा अपीलिंग लगने वाले पाश्चात्य तौर-तरीके अपनाने की कोशिश करते है और हमारे तौर-तरीको को तुच्छ मानते है.विडम्बना तो ये है पश्चिमी लोग अब भारत का रूख अपनाते हुए नज़र आते है.

मेरा नज़रिया सिर्फ हिन्दी तक ही सिमित नहीं है. भारत में 28 भाषाए है जिनको सरकारी रूप से मान्यता मिली है. इन्हें भी मुख्य वाहिनी में जीवित रखने का काम हमारा ही है. दुनिया में इंग्लिश का चलन काफी सिमित है.  मुझे तो लगता है की हम इंग्लिश के गुण-गान करने वाले उस कूपमंडूक जैसे हो गए है जिसकी दृष्टि कुएं के बाहर जाती ही नहीं.

बहरहाल, लिखने को बहोत कुछ है, पर शब्द कम पड़ रहे हैं, सो, सोचता हूँ की इस लेख को इस एक-पंक्ति पर समापत करूं (अंग्रेजी में है, सूली पर न चढ़ाईएगा)

“India is the only country which is divided by a local language, but united by a foreign language –English”